बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

मुझे चेतन भगत पसंद हैं पर मै उन्हें पढता नही हूँ

इस दिवाली पर हिंदी साहित्य की बात से बात शुरू करता हूँ। अब ये मत सोचियेगा कि हिंदी की बात हिंदी दिवस पर ही की जा सकती।

हिंदी साहित्य बिकता नही, हिंदी में ऐसा साहित्य लिखा नही जा रहा जिसे पढ़ा जाए। हिंदी टिपिकल है, ये सारी बातें कही जाती हैं और इन्हें ख़ारिज भी नही किया जा सकता। अब कुछ तथ्य देखिये।
चेतन भगत के अलावा अंग्रेजी के सारे फिक्शन राइटर मिला लीजिये-

रविंदर सिंह, दुर्जोय दत्ता, अरविन्द अडिगा सब को मिला कर उनके फेसबुक पेज के लाइक जोड़ लीजिये और 10 से गुणा कर दीजिये फिर भी कुमार विश्वास के लाइक्स से आधे ही रहेंगे।
चेतन भगत को फेसबुक पर 58लाख लोगों ने लिखे कर रखा है और कुमार को 23 लाख, जबकि चेतन की कई किताबों के सामने कुमार के गिने चुने मुक्तक हैं।

हिंदी के ठीक-ठाक कवियों का एक पेमेंट चेक किसी mba फ्रेशर के महीने भर के वेतन से टक्कर लेता है।

दैनिक जागरण एक दिन में 16 लाख कॉपी बेचता है।

इन सब तथ्यों के साथ आप को ये शक नही होना चाहिए कि हिंदी का पाठक पैसे खर्च नही करता या हिंदी में लोग पढ़ते नही हैं।फिर ऐसा क्या है कि हिंदी की किसी किताब (अनुवाद नही) की 500 कॉपी बिकना खबर बन जाती है।इसे समझने के लिए अपने बचपन में वापस जाइये।

स्कूल के दिनों में कोर्स की किताबों में प्रेमचंद की ईदगाह से शुरू कर के हाईस्कूल में वसीयत जैसी कहानी ने हमारी आज के पीढ़ी को चम्पक, सरिता, कदिम्बिनी से लेकर शेखर एक जीवनी तक का पाठक बनाया। ऐसे में हम जब बस अड्डों पर मिलने वाली मोटी स्लेटी पन्नों की किताबों को देखा करते थे तो घर वालों की हिदायत,
"गंदी किताबे हैं।अच्छे घरों के बच्चे नही पढ़ते"
हमें इन किताबों के लिए एक अलग तरह की गाँठ हमारे मन में डालती गयी।

कुछ समय बीता और फिर mba कर के आये एक शख्स ने अपनी कामचलाऊ अंग्रेजी में एक किताब लिखी "5 point someone- what not to do in IIT"
इस टाइटल में जो iit वाली बात लिखी हुई थी उसने मुझे और मेरे साथ के हर युवा के दिल में छुपे सपने को खरोंचा और किताब की लाखों कॉपी बिक गईं।इस किताब ने एक बात और सिखाई कि बिना डरे अंग्रेजी का पूरा उपन्यास भी पढ़ा जा सकता है और उसमें मज़ा भी आता है

अब अतीत से बाहर आइये।
आज की आम धारणा है हिंदी के मठाधीश साहित्यकार और प्रकाशक मिलकर घिसीपिटी किताबें ऊंचे दाम पर छापते हैं और सरकारी लाइब्रेरी के अलावा उन्हें कहीं पाया नही जाता।
छपनेवाली कवितायेँ ऐसी होती हैं जिन्हें समझने के लिए कोई अलग तरह की गोली खानी पड़ती है।
ये बातें सही हैं मगर पूरी तरह नही। कुछ लोग हैं जो इस बात को बदलने में लगें हैं। इनका धंधा साहित्य की दूकान चलाना नही है बल्कि ये उसी mba,बी टेक वाली पढाई से आये हैं जिसके साथ ढंग का पैकेज मिल ही जाता है और इन्हें ढंग की अंग्रेज़ी भी आती है।किन्तु जैसे समोसे को अंग्रेजी में पैटीज़ कहने से स्वाद चला जाता है वैसे ही जो पैनापन हिंदी में बात कहने से आता है वो अंग्रेजी में नही आता।

ललित कुमार के पोर्टल Kavitakosh.org पर जाइये हिंदी-उर्दू, के लगभग हर कवि(पुराने से नए सब) की कविता आपको मुफ्त में मिलेंगी इस पूरे सर्वर को चलाने से लेकर लाखों कविताओं को अपलोड करने तक पूरी प्रक्रिया इनके तथा इनकी छोटी सी टीम के प्रयास हैं और  इसके बदले में इन्हें शुभकामनाओं और टेंशन के आलावा कुछ भी नही मिलता।

दूसरी तरफ शैलेश भारतवासी अपने हिन्दयुग्म प्रकाशन से अकेले ही कई नए लेखकों को बेस्ट सेलर बना चुके हैं। इनके प्रकाशन में iim के हाई पैकेज वाली टीम नही है और ना ही चेतन भगत की तरह सलमान खान इनकी किताब की तारीफ करते हैं।

ऐसे और कई लेखक और संस्थाएं हैं जिन का दिमागी फितूर उन्हें इन कामों में लगाये रहता है।
तो अगर आप को लगता है कि आप को पढने का शौक है तो इस दिवाली एक नयी किताब ऑनलाइन आर्डर कीजिये। हिंदी के सिस्टम की वजह से ये अभी ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं। आपके शहर के रेलवे स्टेशन तक आते आते इन्हें समय लगेगा। 100₹ की किताब अगर पसंद ना आये तो मेरे जैसे किसी को गिफ्ट कर दें।

यहाँ पर किताब या लेखक का नाम बस इसलिए नही दिया कि कुछ नाम लिखने में कई छूट सकते हैं।

मैंने अपनी किताब आर्डर कर दी है और 3-4 दिन बाद 100₹ कैश ऑन डिलीवरी देकर एक नया नियम शुरू कर रहा हूँ,दिवाली पर ज्ञान का दिया जलाने का। आप भी करिए और लोगों को भी करवाइए।अगर कोई भी मदद चाहिए तो मै हाज़िर हूँ।

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ज्ञान के दीपक जलाने की आशा के साथ शुभ दीपावली।

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