शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

बिहार में एक कहावत है "औकात चवन्नी भर का भी नाहीं अउर भोकाल डालर भर का" इसी के समांनांतर एक शब्द up के पूर्वी अंचलों में प्रचलित है चुतिअमसल्फेट, इन दोनों शब्दों को यहाँ पर प्रयोग करने के पीछे मेरा क्या आशय है उसे समझने के लिए स्कूल के दिनों से जुडी एक घटना सुनिए।

गुरूजी ने कहा "सूरदास तब विहंसी जसोदा लै उर कंठ लगायो" इस पंक्ति की व्याख्या करो-

छात्र बोला "सर! सूरदास जी ने खुश होकर के यशोदा को गले से लगा लिया"

अब आप सोच रहें होंगे इन बातों का आपस में सम्बन्ध क्या है? और इन बातों को आज यहाँ कह्मे का तुक क्या है?

तो जनाब ये चवन्नी भर वाले लोग हैं हमारे कई फेसबुकिये राष्ट्रवादी साहित्यकार और जिस कविता की वो व्याख्या कर रहे हैं वह है हमारा राष्ट्रगान। पिछले कुछ दिनों में मैंने कई लोगों को अपने अपने तरह से गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर और राष्ट्रगान का मजाक देशभक्ति के नाम पर उड़ाते देखा। और तर्क भी इतने हास्यास्पद और गए बीते कि कपिल शर्मा के शो में नारी अस्मिता का मज़ाक भी पीछे छूट जाये। एक सज्जन तो अपना लिखा हुआ नया राष्ट्रगान तक ले आये समाधान के तौर पर।पहले ज़रा तर्क सुनिये-


गरमपंथी तिलक के नेतृत्व में वन्देमातरम गाते थे और नरमपंथी जन गण मन और 1941 में तिलक ने जन गण मन का विरोध किया था।
जबकि तथ्य यह है कि तिलक जी की मृत्यु 1920 में ही हो चुकी थी।

नेहरू जी ने इसकी धुन बनवाई क्योंकि यह ऑर्केस्ट्रा में बज सकता था।
वास्तविकता यह है कि इसकी धुन आज़ाद हिन्द फौज के लिए कप्तान राम सिंह जी ने बनायीं और इसे मिलिट्री बैंड के लिए चुना गया था।

इसको बनाने के कारण टैगोर जी को नोबेल मिला। जबकि गुरुदेव के नोबेल पुरूस्कार के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्होंने खुद अपनी रचनाओं का अनुवाद किया जिससे उनका स्तर बना रहा।

और ब्रम्हास्त्र टाईप का तर्क कि यह जॉर्ज पंचम का स्तुति गान है।तो बाकी बातें छोड़ कर सीधे सीधे आते हैं राष्ट्र गान की बात पर।

राष्ट्रगान के ऊपर एक विशेष आरोप लगता है कि यह जॉर्ज पंचम की स्तुति है।
किन्तु यह आरोप तय करते समय हम इसके पूरे गीत को न लेकर सिर्फ पहले बंध की ही व्याख्या करते हैं।
अगर पूरा जन गण मन पढ़ें तो पायेंगे कि यह कुरुक्षेत्र में खड़े कृष्ण का आवाहन है कि वह देश के सोये हुए अर्जुनों को जगाएं।

मेरे लिए इस समय पूरे राष्ट्रगान की व्याख्या लिखना संभव नही है परन्तु इसमें आये दो शब्द चिर-सारथि और तव शनख्धवनि बाजे से आप इश्वर के साथ इसका सम्बन्ध जोड़ सकते हैं।

जाते जाते महाकवि टैगोर के बारे में दो बातें
जो शायद आप की जानकारी में ना हो जिस बंद गले के कोट को आप भारतीयपन दिखाने के लिए पहनते हैं वह इन्ही की डिजाईन है और भारतीय स्त्रियाँ पहले साड़ी के साथ ब्लाउज नही पहनती थीं यह चलन भी इन्ही के प्रयासों से शुरू हुआ। और इसका विरोध आज जीन्स या मिनी स्कर्ट पहनने से ज्यादा हुआ था।


साथ ही सम्पूर्ण राष्ट्रगान और डॉ शिवोम अम्बर की किताब गवाक्ष का एक लेखांश

जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह तव आह्वान प्रचारित
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन
पारसिक मुसलमान
खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गाँथा
जन गण ऐक्य विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह:
निरन्तर; तव:
तुम्हारा
शुनि: सुनकर
आशे: आते हैं
पाशे: पास में
हय गाँथा:
गुँथता है
ऐक्य: एकता
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-त्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
अभ्युदय: उत्थान;
बन्धुर: मित्र का
धावित: दौड़ते हैं
माझे:
बीच
में
त्राता:
जो मुक्ति दिलाए
परिचायक: जो परिचय
कराता है
घोर-तिमिर-घन-निविड़-
निशीथे
पीड़ित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल
नत-नयने अनिमेष
दुःस्वप्ने आतंके
रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
निविड़: घोंसला
छिल: था
अनिमेष: अपलक
करिले: किया; अंके:
गोद में
रात्रि प्रभातिल उदिल रविछवि
पूर्व-उदय-गिरि-भाले,
गाहे विहन्गम, पुण्य
समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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