गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

मोदी, गाँधी, गाँधी-शास्त्री जयंती और गाँधीवाद

दशहरे की पूर्व संध्या के साथ-साथ आज गाँधी और शास्त्री जयंती है और हमारे प्रधान-सेवक नरेन्द्र मोदी जी सड़कों पर झाड़ू लगा रहे हैं। मुझे पता नही या यूँ कहूँ मै पता नही करना चाहता हूँ कि इस काम से लोग कितना सफाई पसंद बनेंगे।मगर एक दूसरा पहलू भी है जिसने मुझे आज बड़ा विचलित किया।

गांधी जयंती पर गाँधी का अनुयायी होने का दंभ भरने वाले लोग इस सफाई अभियान का उपहास कर रहे हैं।वो गाँधी को क्या समझते हैं पता नही पर मुझे इतना पता है कि गाँधी ने कहा था "पाप से घृणा करो पापी से नही।"
हो सकता है ये एक प्रचार का हथकंडा हो मगर इस से प्रेरित हो कर हम अपने अपने परिवेश को तो सुधार सकते हैं।

दूसरी समस्या मुझे अपने कई पूर्व सहपाठियों से लगी जो शायद अपने दिमागी स्तर के निचले पायदान पर ठहरे हुए हैं।सुबह से पोस्ट को अनटैग करने में काफी समय बर्बाद किया जिनका सार यह था कि गाँधी से गया बीता कोई नही इस देश में।
मै गाँधीवादी नही हूँ, मगर 100 में से 80 बार वही सही साबित होते हैं।
जब दिल्ली की एक सर्द सुबह इन्साफ मांगते लोगों पर पुलिस हड्डियों को कंपा देने वाला पानी डालती है और लोग अगले दिन वापस आकर खड़े हो जाते हैं और शांति से कहते हैं कि बिना इन्साफ के वो नही हटेंगे, तो बापू की तस्वीर मानो कहती है की एक गाल के बाद दूसरा गाल सामने कर दो।

जब अबूझमाल जैसे किसी गाँव से कुछ निर्दोषों के मारे जाने की खबर आती है तो फिर अहिंसा याद आती है।
जब लोग चीन से जीतने के लिए उसकी वस्तुओं का बहिष्कार करने की बात करते हैं तो मुझे भी लगे रहो के मुन्ना की तरह बापू की गांधीगिरी समझ आती है।

ऐसा नही है कि मोहन दास करमचंद गांधी भगवान थे जो कभी गलत नही हुए या उनकी हर बात को बिना परखे ही माना जाना चाहिए मगर वो उस बेईज्ज़ती के भी पात्र नही जो उन्हें हर कदम पर मिलती है। आज के तमाम नेताओं की तमाम कमियों के बाद भी लोग उनके चरणों में लोटते हैं मगर सबसे ज्यादा गाली एक ही नेता को देते हैं, गाँधी से ज्यादा अश्लील चुटकुले शायद ही किसी और नेता पर बने हों।

आप गोडसे को संत का दर्ज दीजिये या नही मुझे फर्क नही पड़ता मगर जिस आदमी ने देश के लिए काफी कुछ किया या करने की कोशिश की उसे इज्ज़त तो दीजिये।

दूसरी बात आज की एक पोस्ट के लिए जिसमे शास्त्री जी को हिंदुत्व और जातीय अस्मिता के नाम पर याद किया गया था। जिस आदमी ने कभी अपने सरनेम का प्रयोग नही किया सिर्फ इस वजह से कि उसकी जातीय पहचान का बोध ना हो उसे ही याद करने के बहाने जातीय समीकरण तलाशे जा रहे हैं।

इस उम्मीद के साथ कि भक्तगण आज के दिन नवरात्र को होने वाली प्लास्टिक की प्लेट्स वाली गंदगी को कम करने का प्रयास करेंगे और मोदी की सफाई की शुरुआत को नाटक कहने वाले लोग खुद नालों में उतर कर सफाई करेंगे।

शुभ विजया!

बोलो दुर्गा माई की जय
आस्चे बोछोर आबार होबे
(अगली साल फिर से उत्सव होगा)


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