शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

साहित्य के सफ़र में जानकीपुल पर कुछ पल

पिछले दिनों जब ABP news ने घोषणा की कि हिंदी के ब्लॉगर सम्मानित किये जाएँगे तो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी "जानकीपुल का नम्बर पक्का है!"

यूँ तो हिंदी ब्लॉग और ब्लॉगर, साहित्य के पर्वर्दिगारों की नज़र में अक्सर टाइमपास ही होते हैं और "फेसबुक आपको समाज और अच्छे लोगों से काटता है" जैसी धारणा सोशल मीडिया पर लिखे गए हर दूसरे लेख में दिखाई दे जाती है मगर पिछले कुछ समय में मैंने अपने आस पास इन दोनों तथ्यों को गलत साबित होते देखा है।

जानकीपुल से पहला संपर्क किसी मित्र की वाल पर हुआ जिसमें मुजरे और गाने वाली बाई जी को लेकर लिखे गए एक पोस्ट को शेयर किया गया था।वहीँ प्रभात रंजन जी से संपर्क भी इसी पुल के माध्यम से हुआ।

जानकीपुल पर ही पढ़े गए लेख के कमेंट से दिव्यप्रकाश दुबे और उनकी मसाला चाय से पहचान हुई और जो धीरे धीरे और गहरा गयी तो iit के छात्र के द्वारा लिखे गए सिनेमा के नौ रसों को पढ़ कर अपने आप को सोच में पड़ा पाया।

आज कल अधिकतर साहित्यिक पत्रिकाओं में कविता पन्ने भरने के काम ज्यादा आती है नए कलेवर को दिखने में कम। मगर कई दिनों बाद सुभम श्री का लिखा-

"बिल्लू हार नही माना रार नयी ठाना"

अपने आप जुबां पर आकर बैठ गया। प्रभात जी आपने जिस खूबसूरती से केदारनाथ अगरवाल से लेकर आज के कवियों लेखकों को मंच दिया है वो तो प्रशंसनीय है ही। हम जैसे पाठकों और साहित्य के छात्रों की जो मदद आपके इस जानकीपुल से हुई है वो भी बड़ा महत्वपूर्ण है।
भारतेंदु जी पर लेख हो या मिश्र बंधुओं के द्वारा स्थापित की गयी आलोचना के ऊपर प्रकाश डालती पोस्ट ये सब मिलकर कुछ एक्स्ट्रा नंबर तो दिलाएंगे ही।


बस यही वजह रहीं कि जब ABP के सम्मान की फोटो प्रभात जी के वाल पर देखी तो उसमे एक टुकड़ा अपना भी नज़र आया।

अगर अच्छे हिंदी साहित्य में आप की भी रूचि है तो एक बार इस लिंक को देख ही डालिये।

www.jankipul.com

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