सोमवार, 26 जनवरी 2015

अंग्रेजी में एक कहावत है कि
when you have power it shows

हिंदी की कवितायेँ बिकती नही, सिर्फ दोस्त पढ़ते हैं, दर्शन को आसान शब्दों में बयां नही किया जा सकता इन सब बातों के बीच बस दर्पण शाह के आने वाले संग्रह की कविता पढ़ कर देखिये और
अगर ये धारणा टूटे तो उसे प्री बुक करिये क्योंकि अगर अच्छी चीज़ों का सब तक पहुंचना ज़रूरी है


सन्दूक
___
आज फिर
उस कोने में पड़े धूल लगे संदूक को हाथों से झाड़ा
धूल आँखों में चुभ गई
संदूक का कोई नाम नहीं होता
पर, इस संदूक में
एक खुरचा-सा नाम था
सफ़ेद पेंट से लिखा
तुम्हारा था, या मेरा
पढ़ा नही जाता है अब
खोल के देखा उसे
ऊपर से ही
बेतरतीब पड़ी थी
ज़िन्दगी
मुझे याद है माँ ने जन्म दिन में, उपहार में दी थी
पहली बार देखी थी,
तो लगता था कितनी छोटी है
पर आज जब पहन के देखता हूँ
बड़ी ही लगती है
शायद, कभी फिट आ जाए
नीचे उसके
तह करके, सलीके से
रखा हुआ है बचपन
उसकी जेबों में देखा अब भी
तितलियों के पंख
कागज़ के रंग
कुछ कंचे
उलझा हुआ मंझा
और
और न जाने क्या क्या?
कपड़े छोटे होते थे बचपन में
जेब बड़ी
कितने ज़तन से मेरे पिताजी ने मुझे
ये ईमानदारी सिलवाई थी
बिल्कुल मेरे नाप की
बड़े लंबे समय तक पहनी
और कई बार लगाए इसमें पायबंद
कभी मुफलिसी के और कभी बेचारगी के
पर इसकी सिलाई उधड़ गई थी
एक दिन जब
भूख का खूँटा लगा इसमें
उसको हटाया तो नीचे पड़ी हुई थी
जवानी
उसका रंग उड़ गया था
समय के साथ-साथ
गुलाबी हुआ करती थी ये
अब पता नहीं
कौन-सा नया रंग हो गया है?
बगल में ही पड़ी हुई थी
आवारगी
उसमें से अब भी
शराब की बू आती है
4-5 सफ़ेद गोल
खुशियों की गोलियाँ
डाली तो थीं संदूक में
पर वो खुशियाँ..
उड़ गई शायद
याद है
जब तुम्हारे साथ मेले में गया था
एक जोड़ी वफाएँ खरीद ली थी
तुम्हारे ऊपर तो पता नहीं
पर मुझपे...
मुझपे ये अच्छी नहीं लगती
और फिर इनका फैशन भी न रहा अब
और ये शायद मुस्कान है
तुम कहती थी न-
जब मैं इसे पहनता हूँ
तो अच्छा लगता हूँ
इसमें भी देखो दाग लग गए थे
इसको जमाने और जिम्मेदारियों के बीच रख छोड़ा न मैंने
ये रहा तुम्हारा प्यार
किसी वेलेंटाइन डे को दिया था तुमने
दो ही साल चला था
हर धुलाई में सिकुड़ता जाता था
भाभी ने बताया भी था-
इसके लिए खारा पानी ख़राब होता है
पर आखें..
आँखें ये न जानती थीं!
क्षेपक : बंद कर देता हूँ सोच के जैसे ही संदूक रखा, देखा, यादें तो बाहर ही छूट गई.
बिल्कुल साफ़. नाप भी बिल्कुल सही.
लगता था जैसे आज के लिए ही खरीदी थी उस वक्त के बजाज से, कुछ लम्हों की कौड़ियाँ देकर.
चलो आज फ़िर,
...इसे ही पहन लेता हूँ।