बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

मैनेजमेंट वाला प्यार, हिंदी वाली कविता के साथ

पहले mba की पढ़ाई फिर हिंदी साहित्य का छात्र बनना, दोनों का प्रभाव कहीं न कहीं लेखन में आता है।
नयी पत्रिका साहित्य दर्शन ने अपने प्रवेशांक में मेरी जिन दो कविताओं को जगह दी है उन्हें पढ़ कर आप को भी मुझसे सहमत होना पड़ेगा।

#1#

दो कमरे बनवाए हैं
दिल की छत पर
कुछ लम्हे
वक़्त से लोन लेकर,
इनमे
ज़रा यादें छोड़ जाओ
तो कब्ज़ा हो जाए।

#2#

हर बात
जिंदगी के
उसी मोड़ पर ठहरी हुई है,
पर क्या करूँ
ऊधव!
"मन दस-बीस नही होते"

©अनिमेष

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