सोमवार, 3 नवंबर 2014

किस Kiss की कहानी

पिछले कई दिनों से समझ नही आरहा था कि यहाँ किस की बात करूँ, आज अचानक से जब ट्विटराते जीवों को किस ऑफ़ लव की बातें करते देखा तो लगा, "क्यों न Kiss की बात करी जाए।"
हिन्दी का किस नही अंग्रेज़ी का वही किस जिसके टीवी पर आते ही आप को उठकर पानी पीने जाना पड़ता है और पापा रिमोट से चैनल बदलने की प्रक्रिया को बिना किसी चूक के दोहराते हैं। कोच्ची में जिस किस ऑफ़ लव नामक आयोजन ने अंग्रेजी (अब राजश्री के आलावा सभी हिंदी) फिल्मों की इस अनिवार्य परंपरा को फिर से चर्चा प्रदान की उसकी बात करने से पहले कुछ तथ्य बता दूं किस के बारे में, जिन्हें आप अपने दोस्तों के बीच अगली बार चटखारे ले कर सुना सकेंगे।(सभी तथ्य इन्टरनेट के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त)

Kiss और honeymoon दोनों की शुरुआत भारत से हुई।किस का पहला ज़िक्र ऋग्वेद में मिलता है जहाँ इसे बोस कहा गया और वहां से ये शब्द लैटिन में बुस बना फिर कुस में परिवर्तित होते होते अंत में किस पर आकर रुका।

लिप-लॉक प्रजाति का किस जिसे अब तक आप अब तक हॉलीवुड से सीखा गया मानते हैं वो भी सिकंदर ने पहली बार हिन्दुस्तान आकर देखा (शायद कर के भी) और सीखा।

हिंदी फिल्मों में चुम्बन युग की शुरुआत मल्लिका शेरावत से कहीं पहले 1929 में (साइलेंट फिल्मों) हो चुकी थी। और 1933 का देविका रानी हिमांशु रानी के बीच 4मिनट का द्रश्य आज भी हिन्दी सिनेमा के सबसे लम्बे दृश्यों में से एक है।

खैर अब इन बातों से बाहर आकर बात करते हैं उस मुद्दे की जिस के बारे में कई दिनों से चर्चा चल रही है।कोच्ची में एक समूह के द्वारा मोरल पुलिसिंग के खिलाफ एक साथ एक जगह पर किस करने की घोषणा की गयी थी और जैसा स्वाभाविक था इसपर विवाद भी हुआ।

मेरी व्यक्तिगत पसंद ऐसे किसी आयोजन की नही है क्योंकि मुझे लगता है कि ये समूह भी निर्णय लेने की स्वतंत्रता से ज्यादा दिखावे की आज़ादी की तरफ ले जाते हैं। ऐसे सभी आयोजनों के बाद मेरे जैसे कई(मुझे नही) अकेले बन्दों को ऐसा लगता है कि ब्लैक एंड डॉग्स नॉट अलाउड की तख्ती आज भी उनके लिए लगी हुई है। मगर मुझे इस आयोजन के विरोध से आपत्ति है।

वैलेंटाइन दे या किस ऑफ़ लव के बाद दो तर्क खूब दिए जाते हैं कि इससे हमारी संस्कृति खतरे में है। आज जींस पहन कर घूम रही हैं कल बिना कपड़ों के घूमेंगी। आज गाल पर किस किया है कल सबकुछ सामने होगा।

अगर 5000 साल पुरानी परंपरा को आप ने इतना कमज़ोर बना दिया कि अगली पीढी के एक आध गुलाब लेने-देने से वो ख़त्म हो जायेगी तो ऐसी दशा के ज़िम्मेदार तो आप ही हो ताऊ। आप खुद सोचिये देश में ऐसे आयोजनों तक आने की नौबत क्यों आयी। पिछले कई सालों में हर वैलेंटाइन दे पर श्रीराम सेना जैसे संगठनों ने खूब तोड़-फोड़ की, सामान्य रूप से घूमते जोड़ों को सरे आम बेईज्ज़त किया, लड़कियों को पीटा, क्या ये भारतीय संस्कृति का हिस्सा था? पिछली साल दिल्ली स्टेशन पर गले मिल रहे पति-पत्नी को पुलिस ने गिरफ्तार किया और फिर अदालत ने उन्हें निरपराध घोषित किया। अगर स्त्री पुरुष के सामाजिक संबंधों को इन संगठनों ने सामान्य रखा होता तो शायद आज ऐसे आयोजनों की नौबत नहीं आती।

अश्लीलता किसी भी रूप में गलत है मगर हमारे समाज के ठेकेदार एक खास प्रकार की सोच को ही पूरे भारत की सोच बना देते हैं। जबकि भारत की विविधता इतनी है कि उसे कभी आयामों में नाप ही नही जा सकता। उत्तर भारत में नवरात्र का अर्थ है व्रत उपवास वहीं बंगाल में यह समय फ़ूड फेस्टिवल का है और जितनी अधिक तरह से पकी मछली आप को नवरात्र में मिलेगी वो किसी और समय मिलना दुर्लभ है। ठीक ऐसे ही उत्तर भारत में अधिकतर महिलाओं के द्वारा रखा जाने वाला एकादशी का व्रत कई जगहों पर सिर्फ विधवाओं का व्रत है। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि आप के खानदान में स्त्रीयाँ घर से बाहर नही निकलती हैं तो वो कुलीन हैं और उत्तर पूर्व राज्यों (जहाँ स्त्री सत्ता प्रचलित है) की महिलायें जो ज्यादा बाहिर्मुखी होती हैं चरित्रहीन है।

ठीक इसी प्रकार से कई समूहों में किस का अर्थ व्यक्ति के साथ बदलता है।एक बड़ी महिला का किसी दूसरी स्त्री को चूमना आशीर्वाद है तो समान उम्र की दो महिलाओं का हवाई चुम्बन सिर्फ एक नमस्कार, यूरोप में अगर कोई बड़ी लडकी किसी छोटे लड़के को चूमती है तो वो भाई बहन का प्यार है।

खैर इन सब को छोड़िये एक कविता की दो पंक्तियाँ जो ऐसे ही किसी किस ऑफ़ लव से खिसियाये शायर ने कहीं होंगी।

किस किस की महफ़िल में
किस किस नेकिस किस को
किस किस तरह से किस किया।
एक वो हैं,
जो हर मिस को किस करते हैं
एक हम हैं,
जो हर किस को मिस करते हैं।

अभी भी कुछ बचा हो किस के बारे में तो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
http://m.wsj.com/articles/BL-IRTB-27097

©अनिमेष

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