शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

मुझे खिसियाहट होती है इन त्योहारों से

इस पोस्ट को पढ़कर यदि आपकी भावनाएं आहत होती हैं तो मै पहले ही आपसे माफी मांग लेता हूँ और सभी पढ़नेवालों से मेरा अनुरोध है कि इस पोस्ट के नीचे अपने कमेंट अवश्य दें।
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मुझे करवाचौथ से खिसियाहट आती है।
जी हाँ!
मेरा स्पष्ट मत है और अगर आप ये कहें कि मै भारतीय संस्कृति का सम्मान नही करता तो मै बता दूँ की इतनी ही खिसियाहट मुझे वैलेंटाइन डे पर भी होती है।

वैसे मूल रूप से तो ये त्यौहार पश्चिमी उत्तरप्रदेश और पंजाब के वैश्य और ब्राम्हणों का त्यौहार था मगर यशचोपड़ा की फिल्मों ने nri मेनिया के फैलाव के साथ इसे पूरे हिन्दोस्तान में फैलाया।आज के दौर में मैंने भारत और इंडिया दोनों जगह इसे अलग-अलग ढंग से मनाये जाते देखा गया है।बात को आगे बढाने से पहले दो घटनाएं सुनिए दोनों मेरे पड़ोस की हैं और वास्तविक है।

एक सरकारी नौकरी में 40,000 महीने कमाने वाली महिला हैं जिनके पति मुश्किल से 10,000 कमाते हैं। मैडम ऑफिस के बाद सीधे मंदिर जाती हैं, हर पूरनमासी को वृन्दावन जाती हैं और घर की सारी ज़िम्मेदारी पति की होती है और अगर कोई गलती हो जाये तो चप्पल से सर जी की पिटाई जायज़ है क्योंकि भगवान की भक्ति में बाधा डालने वाले को दंड तो मिलना चाहिए।

दूसरी तरफ एक भाई साहब हैं जो ठीक ठाक कमाते हैं और पत्नी भी कमाती है। बीवी की सारी कमाई पुत्र लेकर माँ को दे आता है और फिर बीवी अपनी ही तनख्वाह पूरे हिसाब के साथ लोन की तरह मांगती फिरती है। वो पड़ोस में भी जा नही सकती। उसे मैगी पसंद है पर महिने भर की मेहनत और 10,000 रुपए के बाद भी वो एक पैकेट मैगी नही खा सकती क्योंकि सासू माँ को बाज़ार का खाना अच्छा नही लगता।मगर दोनों परिवारों में करवाचौथ अनिवार्य है।

अपने जीवनसाथी की लम्बी उम्र मांगने में कोई बुराई नही है मगर टीवी चैनल की कवरेज और शाहरुख़ खान की फिल्मों से आज यह लगने लगा है कि अगर आपने करवाचौथ पर पत्नी के साथ बोले चूड़ियाँ नही गाया तो आप में कोई कमी है। मेरे घर में इस त्यौहार के लिए कोई स्थान नही है पर नयी पीढ़ी की मेरी भाभियाँ मेरी माँ पर तंज़ कसती दिख जाती हैं कि आप क्या चाचा से प्यार नही करतीं? आप को रखना ही चाहिए।

मेरा सवाल ये है कि ये कौन सी ठेकेदारी है जो ये सर्टिफिकेट दिए जाते हैं आप ऐसा नही करते तो आपने प्रेम नही किया। इसके आलावा बाज़ार के इशारों पर नाचते मीडिया ने जैसे वैलेंटाइन डे पर अकेले फिल्म देखने जाने को अघोषित गुनाह बना दिया है वैसे ही करवाचौथ पर लगता है कि अगर आपने अपनी पत्नी को बच्चन साहब की तरह हीरे के कंगन नही दिए तो जा कर डूब मारिये चुल्लू भर पानी में और विज्ञापन वाली बहनजी सिर्फ 3.5लाख तो ऐसे कहती हैं जैसे सब्जी वाले से 2 गड्डी धनिया मुफ्त में लेने को कह रहीं हों।

3सरी सबसे बड़ी दिक्कत मेरे उन भाइयों से मुझे है जो खुद व्रत रखने लगें हैं। इस दिक्कत का कारण मेरा 'मेल ईगो' नही है। अरे भाई बीवी को भूखा नही देख सकते तो उसे कहो कि व्रत ना रखे या फिर कहो कि जैसे नवरात्रि के या किसी और व्रत में आप सिंघाड़े के आटे की पूड़ी खाने की जुगाड़ कर सकते हैं वैसे वो भी कर ले। मगर आप नही करेंगे क्योंकि आप पति हैं भगवान नही और आप अपनी लम्बी लाइफ के कुछ कीमती साल कम होने का रिस्क कैसे ले सकते हैं। यहाँ पर मुझे 'दिव्य प्रकाश दुबे' की कहानी 'विद्या कसम' याद आ रही जिसमे लड़का कहता है कि सबसे सेफ भगवान की कसम है क्योंकि भगवान् मरते नही हैं।

खैर इस सामूहिक मैरिज अनिवेर्सेरी की शुभकामनाएं लीजिये।मेरे लिए ये राहत की बात है की मुझे जीते जी अपनी पूजा करवाने की ज़िम्मेदारी नही मिली है तो मै थोड़ा-बहुत पापी बना रह सकता हूँ। जाने से पहले जो भी हो कमेंट ज़रूर डालें, सहमत और असहमत दोनों में से जो लगे उसका, आपको आपकी वाली या वाले की कसम।

©अनिमेष

2 टिप्‍पणियां:

  1. mai bilkul sehmat hu apse or apke har tark se ittefaq rakhti hu. Kaun sa prasang kyu hua kis samay uski kya avashykta thi ye koi ni janta bas ritiyo k nam pe lakir pite ja rahe hai.

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