एक समस्या और आती है, न सिर्फ मेरे और अनुलता जी के नाम के पहले दो अक्षर एक जैसे हैं कई जगहों पर नज्मों को बुनने का सलीका और तरीका भी एक जैसा है।
खैर!,,,,,
सबसे सुकून देने वाली किताबें वो होती हैं जिन्हें हम पीछे से पलटना शुरू करते हैं और जब बैक कवर पर आप पढ़ते हैं की
तुम पर लिखी नज्मों की स्याही से रंगे हुए हैं हाँथ मेरे
तुमसे इश्क़ का सीधा इलज़ाम है मुझपर
एक सजा ख़त्म हो तो नयी नज़्म लिखूं ,
तो ये किताब भी डबलबेड के सिराहने रखने वाली किताब बन जाती है।पापा के लिए लिखी गयी कविता अनजाने ही मन को थोड़ा सा तरल कर देती है। चिता में प्रेमपत्र जलाकर यादों का पिंडदान करने की बात एक अलग nostalgia का अहसास लिए है तो सुबह हरसिंगार के फूल चुनती वो खुद ही चाँद है पढ़ कर जलन सी होती है दिल में काश! हमने भी ऐसा सोचा होता कभी।
इस किताब को पढने से पहले कहा गया था कि इसे ख़ामोशी से पढोगे तो इश्क तुम्हे हो जायेगा और हो भी गया। वही 7 मकामों वाला इश्क गुलज़ार का हल्का हलका नमकीन वाला इश्क या ग़ालिब का दिले नादां वाला इश्क़।
आप भी कुछ टुकड़े इस इश्क के चखिए और रूमानी होकर देखिये।
###
सो लौटा दिया मैंने वो तूफ़ान वापस समंदर को
बस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकों पर
जो लुढ़क आते हैं गालों तक
कि नाकाम इश्क़ की निशानियाँ भी कहीं सहेजी जाती हैं।
###-------####
तुमने कहा
मेरी आँखों में बसी हो तुम
मैंने कहा
कहाँ? दिखती तो नही
तुमने कहा
दिल में उतर गई
अभी-अभी
###---------####
न मोहब्बत
न नफरत
न सुकून
न दर्द
कमबख्त कोई अहसास तो हो
एक नज़्म लिखे जाने के लिए।
###----------####
वहम
शंकाएँ
तर्क-वितर्क
ग़लतफहमियाँ
सहमे अहसास
लगता है मोहब्बत को
रिश्ते का नाम मिल गया।
###------
ये तो चन्द अहसास हैं बाकी के लिए आप भी पिछली तरफ से पन्ने पलटना शुरू करिए।
©अनिमेष