रविवार, 29 जून 2014

साईं बाबा और शंकराचार्य विवाद के पीछे की राजनीति

हर फिल्म की शुरुआत में लिखा होता है कि,

"इस फिल्म के सभी पात्र काल्पनिक हैं और किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ इनकी समानता संयोग मात्र है"
ऐसा ही कुछ oh my God के साथ लिखा हुआ था मगर पिछले कुछ समय से टीवी देखते हुए ये बात झूठी लगने लगी है।



शंकराचार्य क्यों साईं बाबा के पीछे नहा धो के पीछे पड़ गए हैं इसे समझने के पहले कुछ बिन्दुओं को ज़रा समझ लीजिये।

हिन्दू धर्म में ईश्वर के अवतार द्वारा बोली गई एक ही किताब है "श्री भग्वदगीता", और हर धर्म में ऐसी ही पुस्तक को सर्वोपरि माना जाता है जिसे किसी पैगम्बर ने खुद कहा हो, कुरआन शरीफ या पवित्र बाइबिल इसी श्रेणी में आते हैं।

गीता में "एकोअहम बहुस्याम्ह" की बात कही गई है अर्थात मै एक हूँ और बहुत से रूपों में दिखाई देता हूँ। इस्लाम या ईसाइयत की तरह बंदा और खुदा की परिकल्पना यहाँ नही है।

दूसरी चीज़ वेद, पुराण और उपनिषद में वेद सनातन धर्म का आधार है और उनमें मूर्ति पूजा की ही बात नही यज्ञों की बात कही गई है तो मंदिर की बड़ी छोटी मूर्तियाँ हमारी भावना के लिए हो सकती हैं धर्म से इनका लेना देना नही है।

पुराण वर्तमान काल तक आते आते सामंतवादी सवर्ण व्यवस्था को बनाये रखने का औजार बन गए हैं। और जिन राधा की पूजा में करोड़ों लोग लीन हैं उनका कोइ ज़िक्र किसी वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, भागवद में नही है। वे पुराणों से उपजी एक रूपक मात्र हैं।

तो फिर सवाल उठता है की अचानक से ये विरोध क्यों?
चढ़ावे के लिए ?

नहीं!

तो राजनीती शास्त्र के दो बुनियादी सिद्धांत याद करिए

1- धर्म अफीम है
2-फूट डालो और राज करो

इस चुनाव में मोदी सरकार बनने से बड़ा काम ये हुआ कि सायकिल वाले नेताजी का यादव हिन्दू हो गया, बहनजी के ख़ास वोटबैंक में डाका पड़ गया और मुस्लिम वोटर नाम का अस्त्र निष्प्रभावी हो गया

अब इतने सारे समीकरण टूटे तो नये भी तो चाहिये ।

शंकराचार्य के रोज रोज आवाहन पर कुछ तो सच्चे हिन्दू उनके साथ जायेंगे, वैसे भी जिन सच्चे मोदित्व में डूबे लोगों ने उम्मीद पाल
रखी है की
मोदी आते ही सब मुसलमानों को पाकिस्तान भेज कर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनादेंगे उनके इधर से उधर ट्रान्सफर होने की सम्भावना ज्यादा है।

और साईं बाबा की पूजा को इस्लाम से जोड़ने का एक ही जरिया है, अमर अकबर अन्थोनी की कव्वाली। वर्ना इस्लाम में तो अल्लाह के आलावा उनके रसूल की भी इबादत नही की जा सकती है।

2014 के चुनावों में कई लोगों ने हिन्दू वोट बैंक की तरह वोट दिया और सफल भी हुए।
अब इस वोट बैंक को अपने पास खीचने के लिए
या बाँटने के लिए
ये लोग एक नया राम मंदिर जैसा मुद्दा ढूंढेगे ही
और मेरी व्यक्तिगत आशंका है की किसी जगह साईं की किसी मूर्ति को अपमानित करने की कोशिश कर के एक नया बंटवारा न शुरू किया जाये।

हमें और हिंदुत्व के इन नए ठेकेदारों को बस ये याद रखना चाहिये की फतवे देने की परंपरा इस्लाम में है हिन्दुओं में नही और हमें अमरीका सा विकास चाहिए इराक या तालिबान स नही ।

मगर फिर भी यकीन मानिए कुछ नए लोग धर्म कको बचाने में शंकराचार्य के पक्ष में जायेंगे ।


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