आज रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि है।
वैसे तो पुण्यतिथि जैसा शब्द हमारे और आप
के जैसे लोगों के लिए ही सही बैठता है लक्ष्मीबाई
जैसी आत्माएं बस रूप बदलती हैं।
मगर आज के समाज, आज के उत्तर प्रदेश आज के बुंदेलखंड को देख कर शायद वो वापस झाँसी आना
ही नही चाहती।
आज भारतीय संस्कृति के नाम पर बनी कई सेनाएं और संस्कृति की रक्षा के नाम पर फेसबुक पर अभियान चलाने वाले संगठन उनके नाम पर कसमे खातें हैं मगर एक बात भूल जातें हैं की
रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी पारंपरिक शिक्षा की जगह अस्त्र-शास्त्र की शिक्षा को चुना था ।
उन पर home science पढने का दवाब नही डाला गया था।
उनकी तात्या के साथ घूमने शिकार पर जाने को लेकर उनके पिता ने ये नही कहा होगा हमारे घर की बेटियाँ ऐसा नही करतीं हैं।
मर्दानी पोशाक में मैदान पर जाने से ससुराल वालो को जीन्स न पहनने जैसी आपत्ति नही होगी।
शादी के बाद भी जब स्त्रियों का संगठन बनाने और प्रशिक्षित करने के प्रस्ताव पर, "क्या ज़रुरत है जॉब की i earn enough" जैसे जुमले शायद न सुने हो
खैर शायद आज के युग में लक्ष्मी बाई का नाम ही सही है वो कहीं न कहीं मिसफिट होती।
वैसे तो पुण्यतिथि जैसा शब्द हमारे और आप
के जैसे लोगों के लिए ही सही बैठता है लक्ष्मीबाई
जैसी आत्माएं बस रूप बदलती हैं।
मगर आज के समाज, आज के उत्तर प्रदेश आज के बुंदेलखंड को देख कर शायद वो वापस झाँसी आना
ही नही चाहती।
आज भारतीय संस्कृति के नाम पर बनी कई सेनाएं और संस्कृति की रक्षा के नाम पर फेसबुक पर अभियान चलाने वाले संगठन उनके नाम पर कसमे खातें हैं मगर एक बात भूल जातें हैं की
रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी पारंपरिक शिक्षा की जगह अस्त्र-शास्त्र की शिक्षा को चुना था ।
उन पर home science पढने का दवाब नही डाला गया था।
उनकी तात्या के साथ घूमने शिकार पर जाने को लेकर उनके पिता ने ये नही कहा होगा हमारे घर की बेटियाँ ऐसा नही करतीं हैं।
मर्दानी पोशाक में मैदान पर जाने से ससुराल वालो को जीन्स न पहनने जैसी आपत्ति नही होगी।
शादी के बाद भी जब स्त्रियों का संगठन बनाने और प्रशिक्षित करने के प्रस्ताव पर, "क्या ज़रुरत है जॉब की i earn enough" जैसे जुमले शायद न सुने हो
खैर शायद आज के युग में लक्ष्मी बाई का नाम ही सही है वो कहीं न कहीं मिसफिट होती।
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