रविवार, 17 अगस्त 2014

कृष्ण अर्थात कष्ट में रह कर इंसान बने रहना

कृष्ण अर्थात, जिसकी हत्या की ज़िम्मेदारी खुद  उसके पिता ने उसके जन्म से पहले ही ले रखी हो।

कृष्ण अर्थात, जिसे पैदा होते ही बाढ़ में उफनती नदी पार करनी पड़ी हो।

कृष्ण अर्थात, जिसे बचपन से ही जिसे रोज मार दिए जाने के खतरे से जूझना पड़ता हो।

कृष्ण अर्थात, जिसे देह के रंग के भेदभाव से रोज़ चिढाया जाता हो।

कृष्ण अर्थात, 12 साल की उम्र में सत्ता से सीधा टकराव।


कृष्ण अर्थात, 16000 शारीरिक शोषण की मारी लड़कियों को संरक्षण देना, दासी नही रानी के रूप में और वो भी बिना अग्निपरीक्षा लिए।

इन सबके बाद भी वो नटखट, सलोने बने रह पाते हैं। बाँसुरी पर ललित, मालकोंस, भैरवी के आलाप के लिए समय निकाल पाते हैं। श्रीदामा की बांह पकड़कर उसे धमका भी लेते हैं। यशोदा के सामने भोले बनकर दाऊ की शिकायत करते हैं और नन्द से सवाल भी पूछ लेते हैं-
"बिना कारण इंद्र की पूजा क्यों बाबा"?
किताबों के ढेर को ज्ञान समझने वाले ऊधव को बड़े मज़े से ढाई आखरों का महत्त्व समझाने वाले माधव अपनी ही बहन को उसकी जबरदस्ती की arrange marriage तुड़वा कर उसे जाने देते हैं, उसके crush के साथ।

महाभारत के तीरों और दिव्यास्त्रों के बीच यूँ ही बिना किसी सुरक्षा और हथयार के मुस्कुराते हुए आते जाते कृष्ण जिस ऊंचाई से गीता के उपदेश देते हैं उसी तत्परता से रथ में जुटे घोड़ों को भी सहलाते हैं।

कृष्ण होना अर्थात पत्तल उठाने और सम्मानित होने में भेद ना करना।कृष्ण होना अर्थात जिस दुशासन को पूरी सभा न रोक पाई हो वो सिर्फ कृष्ण का नाम लेने से डर कर रुक जाए।कृष्ण होने का अर्थ है हर विषमता और ईश्वरत्व के बाद भी मानव बने रहना।

अतः जब कभी भी कहें कि वो करें तो रासलीला हम करें तो.....
तो एक बार फिर से सोचें।

जाते जाते स्वर्गीय देवल आशीष की कुछ अमर पंक्तियाँ-


विश्व को मोहमयी महिमा के असंख्य स्वरुप
दिखा गया कान्हा,
सारथी तो कभी प्रेमी बना तो
कभी गुरु धर्म निभा गया कान्हा,
रूप विराट धरा तो धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा,
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा,
चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे चोरी से
माखन खा गया कान्हा,
गोपियों के कभी चीर चुराए
कभी मटकी चटका गया कान्हा,
घाघ था घोर बड़ा चितचोर था चोरी में नाम कमा गया कान्हा,
मीरा के नैन की रैन
की नींद और राधा का चैन चुरा गया कान्हा,
राधा नें त्याग का पंथ बुहारा तो पंथ पे फूल बिछा गया कान्हा,
राधा नें प्रेम की आन निभाई तो आन का मान बढ़ा गया कान्हा,
कान्हा के तेज को भा गई राधा के रूप को भा गया कान्हा,
कान्हा को कान्हा बना गई राधा तो राधा को राधा बना गया कान्हा,
गोपियाँ गोकुल में थी अनेक परन्तु गोपाल को भा गई राधा,
बाँध के पाश में नाग नथैया को काम विजेता बना गई राधा,
काम विजेता को प्रेम प्रणेता को प्रेम पियूष पिला गई राधा,
विश्व को नाच नाचता है जो उस श्याम को नाच नचा गई राधा,
त्यागियों में अनुरागियों में बडभागी थी नाम लिखा गई
राधा,
रंग में कान्हा के ऐसी रंगी रंग कान्हा के रंग
नहा गई राधा,
प्रेम है भक्ति से भी बढ़ के यह बात
सभी को सिखा गई राधा,
संत महंत तो ध्याया किए माखन चोर को पा गई राधा,
ब्याही न श्याम के संग न द्वारिका मथुरा मिथिला गई राधा,
पायी न रुक्मिणी सा धन वैभव
सम्पदा को ठुकरा गई राधा,
किंतु उपाधि औ मान गोपाल की रानियों से बढ़ पा गई राधा,
ज्ञानी बड़ी अभिमानी
पटरानी को पानी पिला गई राधा,
हार के श्याम को जीत गई अनुराग का अर्थ बता गई राधा,
पीर पे पीर सही पर प्रेम
को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधा,
कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर
प्रीत की रीत निभा गई राधा,
कृष्ण नें लाख कहा पर संग में न गई तो फिर न गई राधा.

1 टिप्पणी:

  1. कृष्ण या किसी भी पौराणिक चरित्र के बारे में जितना लिखा जाए, कम है. आपने सही लिखा है.

    जवाब देंहटाएं